Sadhana Shahi

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मेरा पहला साक्षात्कार ( कहानी) प्रतियोगिता हेतु02-May-2024

प्रदत्त विषय - मेरा पहला साक्षात्कार (कहानी) प्रतियोगिता हेतु

अभी मेरी उम्र 23, 24 की थी। साक्षात्कार शब्द मेरे लिए एक डरा देने वाला शब्द था। साक्षात्कार 11:00 बजे से होने वाला था कहीं मैं देर ना हो जाऊंँ यह सोचकर मैं 10:00 बजे ही साक्षात्कार स्थल पर पहुंँच गई।

इसके पूर्व मैने लिखित परीक्षा को पास कर लिया था। यह साक्षात्कार एक शिक्षिका के लिए था। मैं वहांँ बैठे एक कर्मचारी से पूछी, साक्षात्कार कब और कहाँ पर होगा? तब उस कर्मचारियों ने कहा, हेड ऑफिस में जो यहांँ से थोड़ी दूर है। 10:45 हुआ उसी कर्मचारियों ने मुझे रास्ता दिखाते हुए कहा कि वहांँ पर साक्षात्कार होगा। आप वहांँ चले जाइए। मैं वहांँ गई एक सामान्य से ऑफिस के बाहर लंबे-लंबे बेंच लगे हुए थे और उस पर मेरे ही तरह इंतज़ार करते हुए कई स्त्री- पुरुष / शिक्षक- शिक्षिका पहले से बैठे हुए थे। मैं भी उन लोगों के साथ बैठ गई। उसके पश्चात एक-एक करके नाम बोला जाने लगा। सातवें, आठवें नंबर पर मेरा नाम बोला गया।

यह वह दौर था जब कहीं साक्षात्कार के लिए जाते थे तो अपना पूरा डिटेल फोटोकॉपी लेकर जाते थे। मैं भी एक फाइल में अपना पूरा प्रमाण पत्र ली हुई थी। अंदर जाने पर बैठने के लिए कहने का इंतज़ार करने लगी। सामने बैठे हुए पांँच लोगों में से एक लोगों ने मुझे इशारे में बैठने को कहा। मैं धन्यवाद देते हुए बैठ गई। उसके पश्चात पांँच लोगों की तरह से प्रश्नों की बौछार शुरू हुई और मैं इधर अकेली उन पांँचों लोगों के बौछारों को संभाल रही थी। कभी-कभी ऐसा भी हो रहा था कि एक साथ दो लोग प्रश्न पूछ ले रहे थे मैं उन सभी को संतुष्ट करने की कोशिश कर रही थी, और शायद मेरी कोशिश पूरी भी हो रही थी।

करीब 4 से 5 मिनट के पश्चात उनमें से एक लोगों ने पूछा, आपके पसंदीदा लेखक कौन है? मैंने कहा मुंशी प्रेमचंद। उन्होंने कहा क्यों? मैंने उन्हें जवाब देते हुए कहा, क्योंकि प्रेमचंद की रचनाएंँ अपने समय के देश, काल व समाज का यथार्थ परख चित्रण करती हैं। उनकी रचनाएंँ धरातल से जुड़ी हुई हैं, इसी के साथ-साथ उन्होंने बड़े ही सरस, सरल ,प्रवाहपूर्ण तथा प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है जो अनायास ही हर व्यक्ति के अंतर्मन को स्पर्श कर लेते हैं।

फिर उन्होंने पूछा आपके हिसाब से कहानी सम्राट कौन है? मैंने कहा, जी निश्चित रूप से मुंशी प्रेमचंद। फिर उन्होंने कहा, आप तो कॉलोनी में रहती हैं अगर आपको गांँव में रहना हो तो क्या आप रह सकेंगी? मैंने कहा जी ,बिल्कुल रह सकूंँगी। लेकिन यदि मेरे माता-पिता की अनुमति हो तब। साक्षात्कारकर्ता ने पूछा, यदि आपको यह नौकरी गांँव में रहकर करनी पड़े तो क्या आप कर सकेंगी? मैंने जवाब देते हुए कहा, शायद नहीं। क्योंकि मेरे पिता एक सरकारी कर्मचारी हैं और मुझे एक अनजान गांँव में अकेले रहने की अनुमति नहीं प्रदान की जाएगी। तब उन पांँचों साक्षात्कारकर्ताओं ने एक साथ कहा, आपके ज़वाब से हम सभी संतुष्ट हैं लेकिन हो सकता है आपको कोई गांँव ही दिया जाए ऐसी स्थिति में आप क्या करना चाहेंगी?

तब मैंने कहा, माफ़ करिएगा, हो सकता है मैं फिर इस नौकरी को ना कर पाऊंँ। फिर उधर से प्रश्न हुआ क्यों क्या आप अपने माता-पिता के विरुद्ध नहीं जा सकती? मैंने कहा जी नहीं, मैं अपने माता-पिता के विरुद्ध बिल्कुल नहीं जा सकती फिर एक साथ साक्षात्कारकर्ता ने पूछा क्यों? आजकल तो लड़कियांँ कहांँ से कहांँ जा रही हैं और आप अपने माता-पिता के विरुद्ध जाकर गांँव में रहकर नौकरी नहीं कर सकतीँ। मैंने कहा कि लड़कियांँ ज़रूर कहांँ से कहांँ जा रही हैं। लेकिन जो भी लड़की अपने माँ-पिता के दिल को दुखाकर, उनको ठेस पहुंँचाकर कर आगे बढ़ना चाहेगी वह अपनी ज़िंदगी में कभी भी सफ़ल वह खुश नहीं रह पाएगी। फिर उन्होंने कहा यदि आपको कॉलोनी में ही नौकरी मिल जाती है लेकिन आपको विद्यालय के अंदर ही रहना होगा जहांँ पर आपके मांँ-बाप आप से मिलने नहीं आ सकते ऐसी स्थिति में क्या आप वहांँ रहना चाहेंगी? मेरा ज़वाब फिर से बड़े ही निष्ठुरतापूर्वक जी बिल्कुल नहीं। फिर साक्षत्कारकर्ता क्यों? अब क्या दिक्कत होगी? मैंने कहा मुझे मेरे माता-पिता ने ही मुझे पाल-पोषकर, पढ़ा- लिखा कर इतना बड़ा किया और जिस स्थल पर उनका प्रवेश वर्जित है मैं उस स्थल पर बिल्कुल भी काम नहीं कर सकती। इसके अतिरिक्त हम जहांँ काम करते हैं वह स्थल हमारे लिए कर्मभूमि होता है वह मंदिर के समान पवित्र होता है और वहांँ के हमारे सीनियर्स हमारे हमारे लिए श्रद्धेय होते हैं। अब जिस स्थल पर रहकर मैं खुश होकर कार्य न कर सकूंँ, जिनके लिए मैं कार्य कर रही हूंँ उनके लिए मेरे मन में आदर, मान मर्यादा न हो ऐसी जगह पर मैं बिल्कुल भी काम नहीं कर सकती। ऐसा कहते हुए मैंने अपना फाइल समेटा और बड़े ही निष्ठुरतापूर्वक ऑफिस के बाहर निकलने लगी। तभी पीछे से आवाज आई आपका इंटरव्यू पूरा नहीं हुआ है। अभी बहुत कुछ बाकी है मैं पीछे मुड़ी फिर से इशारे में साक्षात्कारकर्ता ने बैठने को कहा और मैं बेमन से बैठ गई। तब उन्होंने एक लिफ़ाफ़ा मुझे पकड़ाया मैं उस लिफाफे को लेकर फिर बाहर निकलने लगी। तब उन्होंने कहा इसको यहीं हमारे सामने ही खोलिए। मैंने उस लिफ़ाफ़े को जैसे खोला पांँचों साक्षात्कारकर्ता एक साथ मुस्कुरा रहे थे और उनकी मुस्कुराहट तथा लिफ़ाफ़े को देखकर मैं भी मुस्कुरा रही थी। और इस तरह हमारा पहला साक्षात्कार सफ़ल हुआ। मैं जिस नौकरी के लिए गई थी मुझे वो नौकरी मिल चुकी थी और साथ ही साथ मुझे ढेर सारा आत्मविश्वास और खुशियांँ भी मेरी झोली में आ गई थी ।

साधना शाही,वाराणसी

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2 Comments

Babita patel

04-May-2024 12:36 PM

Amazing story

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Mohammed urooj khan

03-May-2024 01:27 PM

👌🏾👌🏾

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